ऋषिकेश साधना शिविर 2008


२५ दिसम्बर २००८ शाम के चार बजे। गंगा किनारे वानप्रस्थ आश्रम मैं हर साल की तरह शिविर की शुरुआत हुई। गुरूजी ने सेवा के ऊपर ज़ोर देते हुए एक सुंदर भजन गाया, सखी री संत सेवा करी आई। फिर यम् और नियम की चर्चा करते हुए बात सत्य और अहिंसा की तरफ़ बात चली। गुरूजी ने एक शिष्य के कर्तव्यों मैं सत्य और अहिंसा को प्राथमिकता दी। शिष्यों की क्या जिम्मेदारियां हैं उसपर भी बल दिया। उन्होंने उपस्थित श्रोताओं से यह प्रश्न पुछा की आप क्या सुबह चार बजे जग जाते हो। योग, प्राणायाम और ध्यान करते हो? अगर नियम से ऐसा नहीं हो पाता, तो आप सच्चे साधक कहलाने के योग्य नहीं हो।
सब साधकों को रोजाना आध्यात्मिक दिनचर्या लिखने का निर्देश मिला गुरूजी से। कितने बजे उठे, कितने घंटे योग, ध्यान और जप किया। शाम को योग निद्रा किया की नहीं। पूज्य गुरूमा ने साधकों से २४ घंटों के एक दिन मैं से दशम अंश यानि की ढाई घंटे प्रभु को अर्पण करने को कहा। तन, मन और धन से प्रभु के हो जाओ। मन से ध्यान, योग, जप और प्रभु की याद करो(भजन)। तन से गुरु की और प्रभु की यानि समाज मैं जो ज़रूरतमंद लोग हैं, उनकी सेवा करो। धन का दशम भाग गुरु को अर्पित करो या किसी भी सामाजिक कार्य लगाओ। यहीं गुरूजी का संदेश रहा इस शिविर मैं।
गुरूजी ने उपस्थित साधकों से लिख के देने के लिए कहा की क्या वे ये सब कर रहे हैं की नहीं। लिखित उत्तर पाने के बाद गुरूजी इस नतीज़े पर पहुंचे की अधिकांश साधक बेईमान हैं, साधना ठीक से नहीं कर रहे। गुरूजी ने एक उदहारण दिया जिसमे की एक संत प्रवचन कर रहे थे। प्रवचन के बाद उन्होंने साधकों से पूछा की उन्हे क्या समझ आई। पर वे उत्तर न दे सके क्योंकि वे सब बहरे और गूंगे थे। गुरूजी ने कहा की तुम लोगों का भी यही हाल है। मैं सालों से बता रही हूँ की कैसे जीवन जीओ, पर तुम ये बिना सोचे की फिर नर तन मिलेगा की नहीं, बेहोशी से जियें जा रहे हो, बिना नियम, बिना बंधन, बिना साधना करे, जीवन यापन कर रहे हो।
गुरूजी ने कई साधकों के पत्रों का भी उत्तर दिया। भय और क्रोध की भी चर्चा हुई। किस तरह से इनसे छुटकारा पाया जाए। किस तरह से शवास लेनी चाहिए, इसका खुलासा गुरूजी ने किया। 'शवासों का विज्ञान' ध्यान की विधि सिखाई गई। उर्जा ध्यान और प्रणव ध्यान का भी अभ्यास किया गया। रोज़ सुबह गुरु जी के साथ बैठक शुरू होने से पहले योगा होता होने के पहले योगा अभ्यास किया जाता ।

११ बजे योग निद्रा का अभ्यास किया जाता । सभी साधकों ने गंगा के किनारे बैठ कर भी ध्यान का आनंद लिया ।

जय गुरुदेव, ऐसी करी गुरुदेव कृपा, मेरे मोह का बंधन तोड़ दिया ।

सीमा मिश्रा , कोलकात्ता