" जैसे सपना रैन का तैसो ये संसार "



ऐसा
कैसे हम मान ले ? ख्याल रखना सपने को भी सपना तुमने कब जन ? हर रात सपने से उठने के बाद तुमने कहा कि वह सपना था । वह सपना था । वह सपना था पर जागने के बाद कह रहे हो कि सपने चलते में कह रहे हो ? सपने चलते में कह रहे हो ? सपने चलते में तो कह नहीं रहे हो तो जब सपना चल रहा था तब तुमने उसको सच्चा माना , जागने के बाद उसको झूठ कहा । ठीक ऐसे ही यह जिस दुनिया को तुम देख रहे हो ये दुनिया भी चलता फिरता स्वप्न है पर जब तक तुम जागोगे नहीं तब तक तुमको ये सपना लगेगा नहीं चाहे हजार मन्त्र जाप कर लो । मन्त्र जाप कि दुनिया झूठ है , झूठ है , झूठ है । तुम्हारे कह देने से दुनिया झूठ हो जायेगी ?

ब्रह्म सत्यम् जगत मिथ्या ब्रह्मै परा:

परमात्मा ही सत्य है सारी दुनिया मिथ्या है । झूठ है । मिथ्या किसको कहते हैं , जिसका प्राग भाव , प्रदवंसा भाव न मालूम हो कि कब चालू हो कब ख़त्म हो जाए । जिसका आदि - अंत न समझ लगता हो उसको हम मिथ्या कहते हैं और सारा माया जगत मिथ्या है । ऐसा शंकराचार्य को लगा । अब कई बार जब के ये शलोक पड़ते हैं लोग तो वो कहते हैं महाराज ! कैसे मिथ्या ? ख्याल करना जब शंकराचार्य कहते हैं कि संसार मिथ्या है तो वो अपनी स्थिति ब्यान कर रहे हैं कि मेरे लिये मिथ्या हो गया है , अभी तेरे लिए सच्चा ही है । तेरे लिये संसार झूठ उस दिन होगा , जिस दिन तू अपने आत्मत्व कि सच्चाई को समझ लेगा । उसके पहले पड़ते रहो इस शलोक को , पर लगेगा कि भाई संसार झूठ है तो फ़िर हम झूठ के पीछे क्यों भाग रहे हैं ।

ऋषि अमृत जुलाई २००१

मनुष्यता



"
संतन मत मोहे दीनी ऐसी ,
बुझे दीप में जोत हो जैसी "


जैसे दीप बुझा हुआ हो और फ़िर कोई उसमें ज्योति रख दे , तेल दाल दे और दिया सलाई से जला दे तो अंधेरे कमरे में रौशनी फैल जाती है ।

ऐसे ही संत तुमको वो मति देता है , वो अक्ल देता है , वो समझ देता है जिससे तुम्हारे बुझे हुए अंधकारमय जीवन में प्रकाश हो जाए , उजाला हो जाए , रोशनी आ जाए ।

आप पूछ सकते हो कि संत ये सब क्यूँ कर रहा है ? संत ये सब इसलिये कर रहा है कि कभी वो भी तुम्हारी तरह कामना और वासना कि खाई में गिरा था और कामना , वासना के कही खड्डे कितना दुःख देते हैं वो जानता है । फ़िर भगवद् कृपा से , सदगुरु की कृपा से उसने परम सत्य को जन फ़िर उस परम सत्य को जानने का क्या आनद है उसने वो भी जन है । इसलिये अपने ही दुसरे भाई और बहनों , अपने ही जैसे दुसरे मनुष्यों को जब उसी कामना और वासना के खाई खड्डे में गिरे हुए देखता है तो पीड़ा उठती है , करुना आती है और वो कहता है , वो चाहता है की जिस आनंद को मैंने जन उसको तू भी ले । इसमें वो आपके ऊपर कोई परोपकार नहीं कर रहा ।

आपके घर के सामने खड्डा हो और बरसात ज्यादा हो जाने से उस खड्डे में पानी भर गया , ऊपर भी पानी भर गया , खड्डा दिख नहीं रहा है और कोई राहगीर गिर गया , अगर घर का मालिक भलामानस होगा तो जरुर कोशिश करेगा की वो दूसरो को चेता दे की यहाँ खड्डा है बचके निकलना । इसे इंसानियत कहते हैं , मनुष्यता कहते हैं । वो किसी पे एहसान नहीं कर रहा , वो अपने मनुष्य होने का कर्तव्य पालन कर रहा है ।

ऐसे ही संसार के दुःख रुपी खड्डे में गिर जाओ इसलिए संत रुपी मित्र तुम्हें सत्संग युक्ति देता हैं कैसे तुम दुःख के खड्डे से बच जाओ तो संत भी अपने मनुष्य होने का कर्तव्य पालन कर रहा है वो तुमपे कोई एहसान नहीं कर रहा ।

ऋषि अमृत जुलाई २००१