मनुष्यता



"
संतन मत मोहे दीनी ऐसी ,
बुझे दीप में जोत हो जैसी "


जैसे दीप बुझा हुआ हो और फ़िर कोई उसमें ज्योति रख दे , तेल दाल दे और दिया सलाई से जला दे तो अंधेरे कमरे में रौशनी फैल जाती है ।

ऐसे ही संत तुमको वो मति देता है , वो अक्ल देता है , वो समझ देता है जिससे तुम्हारे बुझे हुए अंधकारमय जीवन में प्रकाश हो जाए , उजाला हो जाए , रोशनी आ जाए ।

आप पूछ सकते हो कि संत ये सब क्यूँ कर रहा है ? संत ये सब इसलिये कर रहा है कि कभी वो भी तुम्हारी तरह कामना और वासना कि खाई में गिरा था और कामना , वासना के कही खड्डे कितना दुःख देते हैं वो जानता है । फ़िर भगवद् कृपा से , सदगुरु की कृपा से उसने परम सत्य को जन फ़िर उस परम सत्य को जानने का क्या आनद है उसने वो भी जन है । इसलिये अपने ही दुसरे भाई और बहनों , अपने ही जैसे दुसरे मनुष्यों को जब उसी कामना और वासना के खाई खड्डे में गिरे हुए देखता है तो पीड़ा उठती है , करुना आती है और वो कहता है , वो चाहता है की जिस आनंद को मैंने जन उसको तू भी ले । इसमें वो आपके ऊपर कोई परोपकार नहीं कर रहा ।

आपके घर के सामने खड्डा हो और बरसात ज्यादा हो जाने से उस खड्डे में पानी भर गया , ऊपर भी पानी भर गया , खड्डा दिख नहीं रहा है और कोई राहगीर गिर गया , अगर घर का मालिक भलामानस होगा तो जरुर कोशिश करेगा की वो दूसरो को चेता दे की यहाँ खड्डा है बचके निकलना । इसे इंसानियत कहते हैं , मनुष्यता कहते हैं । वो किसी पे एहसान नहीं कर रहा , वो अपने मनुष्य होने का कर्तव्य पालन कर रहा है ।

ऐसे ही संसार के दुःख रुपी खड्डे में गिर जाओ इसलिए संत रुपी मित्र तुम्हें सत्संग युक्ति देता हैं कैसे तुम दुःख के खड्डे से बच जाओ तो संत भी अपने मनुष्य होने का कर्तव्य पालन कर रहा है वो तुमपे कोई एहसान नहीं कर रहा ।

ऋषि अमृत जुलाई २००१

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