
जितनी बड़ी सच्चाई यह है की जीवन है उतनी बड़ी सच्चाई यह भी है कि जीवन का अंत निश्चित है । आप लाख चाहने पर भी न तो इससे छूट सकते हैं , न बच सकते हैं , न भाग सकते हैं और न ही मृत्यु के भय से अपने आप को लाख उपाय करने पर भी सुरक्षित रख सकते हैं । मृत्यु का वार अचूक है ।
गुरु नानक साहब अपनी यात्राओं में एक बात कहते हैं - ईरान के पास जब रुके थे । बैठे थे रेगिस्तान में और मरुभूमि की कड़ी दोपहरी इनके दोनों शिष्य , हिंदू , भाई बाला और इनका एक मुस्लमान शिष्य भाई मरदाना , दोनों साथ में थे । आँख बंद किये ध्यानस्त थे ।
अचानक आँख खोते हैं , पूछते हैं बाला से कि बाला ! बता तो इस जिन्दगी में , इस संसार में इस जीवन में सबसे बड़ी सच्चाई क्या है , क्या है सच्चाई ? बाला सोच विचार के कहता है - हे गुरु बाबा ! सबसे बड़ी सच्चाई यह कि , यह कि , यह जिन्दगी हमें चार दिनों के लिए मिली है और इन चार दिन में हम को बहुत बड़े - बड़े काम करने हैं और सबसे बड़ा काम माया से अतीत परब्रह्म कि पहचान करनी है । सबसे बड़ी सच्चाई तो जिन्दगी कि यही है । फ़िर पूछते हैं गुरुनानक मरदाना से कि तुम बताओ तुम्हारी नजर में सच्चाई क्या है ?
जीवन में , इस जगत में , इस संसार में सबसे बड़ी सच्चाई कौन सी है ? मरदाना कहते - गुरुवर ! मेरी नजर में सबसे बड़ी सच्चाई सिर्फ़ इतनी बाकी तो सब झूठ है । सिर्फ़ एक ही सच्ची बात है कि जगत में जो सांचे संत हैं , महापुरुष रहते हैं , बस उन्ही से सच्चाई है । वे न हों तो सच्चाई कुछ भी नहीं है । उत्तर दोनों सुंदर हैं पर गुरुनानक तृप्त नहीं हुए । उन्होंने कहा , फ़िर पूछते हैं - आप कैसे उत्तर हमसे चाहते हैं आप हमें वह बतलाइये ? गुरु नानक बहुत धीर गम्भीर सोच से कहते हैं - मेरे प्रिय शिष्यों ! सबसे बड़ी सच्चाई जगत में यह है कि जन्म के बाद कोई लाख चाहे कि मरे न , तो वो मौत से बच नहीं सकता । कितना ही प्यारा क्यों न हो उसका घर । कितना ही सुखी क्यों न हो उसका संसार , कितना ही संत क्यों न हो जाए । यह सच्चाई तो रहनी है जन फ़िर भी पड़ता है . चाहे आप साधु हों , चाहे आप असाधु हों , ज्ञानी कि अज्ञानी , नास्तिक कि आस्तिक इस मृत्यु कि सच्चाई से कोई इनकार नहीं कर सकता है ।
पर हैरत इस बात की है कि हम लोग हर विषय पर चिंतन करते हैं , पड़ते हैं , सुनतें हैं । यहाँ तक कि मौत के बारे में भी ऐसा नहीं कि तुम सुनते नहीं , सुनते भी हो और अपने निकट सम्बन्ध में कोई मर जाता है तो उसकी मरगमें भी जाते हो । पर एक अजीब भ्रम आदमी के मन के ऊपर चल रहा है । वो एक सम्मोहन सा जैसे कि उसकी आँख के सामने लोगों को मरते हुए देख कर भी जरा क्षण को भी यह अहसास नहीं आता कि यह मृत्यु एक दिन मुझ पर भी आने वाली है ।
कहते जरुर हैं कि हाँ यही सच है कि मौत जरुर होगी और यही सच है कि हम को मरना पड़ेगा । लाख चाहे , लाख चाहे बचना , बच नहीं सकते ।
ऋषि अमृत 2001