जिस बहार का इन्तजार था








जिस
बहार का इन्तजार था
आज उसको आते देखा
फ़िर , खुशी को मुस्कुराते देखा
ख़ुद को तेरे ही चरणों में
आज सर झुकाते देखा ,
जिस प्यार की चाह थी
ख़ुद को तुम्हीं से पाते देखा
आज फ़िर बहार को आते देखा
जिस से खफा था ये जीवन
आज उसी को अपने भीतर देखा
जिसने रचा है ये सारा संसार
आज उसी को भीतर नाचते देखा
जिस बहार का इन्तजार था ,
आज उसी को आते देखा ।
तुझको ख़ुद को मुस्कुराते देखा
भीतर की बहार में
आज दुनिया को खोते देखा
बहार की बहार में ,
आज , ख़ुद को भीगते देखा
ख़ुद को खुदी से प्यार करते देखा
आज ख़ुद को तेरे इतने पास देखा
फ़िर खुशी को मुस्कुराते देखा
जिस बहार का इन्तजार था
आज उसी को आते देखा ।

ऋषि अमृत 2004

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