'शरीर से अलगाव ' साधना का एक प्रयोग


अपने शरीर के किसी भी एक अंग पर अपनी दृष्टि केन्द्रित करो । जैसे हाथ ही , तो पूरी दृष्टि अपने हाथों पर रखें , सिर्फ़ हाथों । खा रहे हैं , सो रहें हैं , किसी से मिल रहें हैं या कुछ भी कर रहें ; उस समय बस हाथ ही रह जाएं सिर्फ़ , और कुछ है ही नहीं । जब हाथ पड़ें हो तब भी , जब चल रहें हो तब भी ।

यही दृष्टि कभी सिर्फ़ आँख , कान , शब्द या कभी जिहवा के ऊपर दृष्टि रखना मज़ेदार होता है । क्योंकि आदमी बड़ा अजीब सा लगता है , अपनी जिहवा को खाते में , बोलते में जब देखता है , तो बड़ा अजीब सा महसूस होता है । लगता है की चुप ही रहो , मत बोलो । जब हम बोलते हैं , जीभ कहाँ - कहाँ छूती है , कहाँ - कहाँ घूमती है , कहाँ - कहाँ जाती है ; उन सभी स्पर्शों को देखें । या कभी सिर्फ़ नाक व् श्वास पर । ध्यान श्वास पर रहेगा तो गंध । दुर्गन्ध । इतने स्पष्ट होने लग जाते हैं । अभी बताओ कौन सी गंध आ रही है ? अंदाज मत लगाओ ! नहीं आ रही तो बोलो ' नहीं आ रही ' ।

शरीर के किसी भी एक अंग का द्रष्टा हो जाओ । सिर्फ़ हाथ , सिर्फ़ पैर , सिर्फ़ पेट , सिर्फ़ पीठ , सिर्फ़ सिर । अब यह प्रयोग बहतु सूक्ष्म है । मैं जितनी तेजी से बोल रहीं हूँ , यह उतना आसान नहीं है क्योंकि जब एक - एक अंग पर काम करने लगोगे तो मालूम होगा कि कितनी बार बूल ही जाओगे कि ध्यान रखना है । तो ' ध्यान रखना है ' , इसका भी ध्यान रखना पड़ेगा ।

शरीर से अलगाव कि स्थिति तक पहुँचने का यह बहुत अचूक साधन हैअपने शरीर कि समस्त क्रियाओं के प्रति सजग होनाशरीर जो भी क्रिया कर रहा है,उसे अनुभव करना है

जैसे वायु का स्पर्श पूरे शरीर में महसूस करें । गर्मी है , सर्दी है , वायु है , हवा है , कुछ भी न करें , बस उसके स्पर्श के प्रति जागरूक हो जाएँ । शरीर से अलगाव कि स्थिति यूँ महसूस हो जायेगी ।

इस तरह एक - एक अंग पर काम करते - करते महीने - दो महीने में धीरे - धीरे समूचे शरीर पर एक साथ दृष्टी रखना आसान हो जाएगा । अभी रखना इतना सहज नहीं है । यह बहुत अच्छा उपाय है ।

ऋषि अमृत जुलाई २००९

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