जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि


सिर ते टोपी ते नियत खोटी
ऐवें मथ्था कानू घसाइदा
क्यों घिसा रहा है मथ्था अपना मस्जिद में जब तेरी नियत खोटी है ब्राह्मण वाद , कटटर वाद का खण्डन करते हुए दूसरी जगह कहते हैं -
टके टके शिव शंकर बेचे
पा पा हुण्डी पेट है लोचे
दक्षिणा इकट्ठी करता है , खा खा के पेट बड़ा करता है और एक एक आणे में पुण्य बेच देता है जब कहते कि तुम्हारे लिए यज्ञ अनुष्ठान मैं कर देता हूँ , दक्षिणा तुम दे देना , पुण्य तुमको दे दूँगा । इसके बावजूद आज की इस काफी में बाबा बुल्लेशाह कह रहे हैं कि इस मौलवी के रूप में भी तू ही है । मेरे मालिक , तू ही है । तू ही है जो ' सुन्नत फर्ज दसेंदे हो '

इस्लाम में शिया और सुन्नी दो मुख्य वर्ग हैं । उसके इलावा और भी हैं । बोहरी है , सैययद है , कादियानी हैं , लेकिन यहाँ उन्होंने दो का ही ज़िक्र किया । कहीं तो तू मौलवी है , 'शिया' और कहीं तू सुन्नी है ।
किते राम दुहाई देंदे हो
कहीं तू मेरे मालिक , राम नाम कि अलख जगा रहा है । और कहीं -
मथ्थे तिलक लगाइदा
कहीं तू माथे पर तिलक लगा के , त्रिपुंड लगा के बैठा है । माने , कहाँ तो मौलवी और कहाँ त्रिपुंड धारी । पर - 'किस थीं आप छुपाइदा' पर मेरे से छुपेगा अब कैसे ।

ब्रह्मदृष्टि को प्राप्त , कौन होगा , ब्रह्मदर्शन , कौन कर पायेगा ? जो पहले अपने आप को चैतन्यरूप अनुभव करे । अंधे को बाग़ बहारों से क्या मतलब ! आँखें न हो और अंधे को कहो 'चल, तुमको मुग़ल गार्डन घुमा लायें, काश्मीर का शालीमार बाग़ दिखा लाएँ' । वो कहेगा , 'मेरे किस काम का ? हाँ , में जाऊंगा बाग़ में तो ताज़ी हवा का सुख ले सकता हूँ, फूलों कि खुशबू सूंघ सकता हूँ लेकिन फूलों के रंग न देख पाऊंगा, कलियों को खिलता तो न देख पाऊंगा । जब देख नहीं सकता हूँ तो जून ही क्यों ? '

देखने के लिए आँख चाहिए और आँख अगर सही न हो तो आँख को पहले सही कराना होगा । ऐसे ही अनन्त चैतन्य सच्चिदानंद हर घाट में मौजूद है , पर वो हर घाट में दिखे किसको, उसको जिसकी आँखें सही हों। जिसकी अपनी आँख सही नहीं , वो मंदिर में जा करके भी सिर्फ यही देखता है कि भगवान् बहुत अमीर है ।

कुछ साल पहले जगननाथ पुरी में चोरी हुई । हीरे के श्रृंगार , कुछ जेवर थे चुराए गए । दुसरे दिन मिल भी गए , मंदिर के ही कुँए में मिले । चोर ने वहाँ पर डाले होंगे कि सही वक्त पर निकाल लेगा। पर वो जो खोजी कुत्ते होते हैं पुलिस के वे सूँघ करके कुँए कि तरफ बताने लगे । पुलिस वालों ने आदमी भेजे , जेवर मिल गए ।

माने , अगर भावना सही नहीं हा तो मंदिर में जा करके भी वो यही देखेगा कि यहाँ कितना माल मिल सकता है । कोई मूर्तिकार जो अपनी कला से प्रेम करता है वो मंदिर में चला जाए तो वहाँ के शिल्प को देखेगा कि ये किस सदी कि मूर्ति है , कैसी बनी है , कैसी नहीं बनी है । दक्षिण भारत कि है या उत्तर बहरत कि है । किस तरह के इसके रंग हैं , किस तरह इसको छेदन किया गया । पत्थर कैसा था । वो ये देखेगा ।

अमृतसर के दरबार साहब में एक बहार से आये हुए ' एन आर आई' सिक्ख , पहली बार गये । दर्शन करने को बड़ी श्रद्धा से गए । बाद में कहते । ' यहाँ तो बाबा बहुत अमीर है' । महाराजा रणजीत सिंह द्वारा भेंट कि हुई हीरे कि कलगी , सोने चांदी के दरवाजे ।

जब वो गए वो दिन भी ऐसा था , जब वो पूरा खजाना दिखाया जाता है । नौलखा हार , उस ज़माने में उसकी कीमत नौ लाख थी । जितना चढ़ावा चढ़ा है , सब वहाँ पर लगाया गया था , दिखया गया था । कहता, ' यहाँ बाबा बहुत अमीर है' । माने , लोभी आदमी मंदिर गुरुद्वारे भी जाता है तो ये देखता है कि यहाँ का भगवान अमीर है और यहाँ का भगवान गरीब है । जैसी दृष्टि वैसी ही सृष्टि उसको दिखती है ।

एक बार ठाकुर रामकृष्ण को दक्षिणेश्वरमंदिर के मैनेजर जो रानी रासमणि के जवाई भी वे इनको अपने साथ एक नाचने वाली के घर ले गए । कहते , आज मेरे साथ चलो। चले गए साथ में । अब वेश्यालय है , नर्तकी का घर है , श्रृंगार रस कि जगह है और रामकृष्ण तो है साधु बाबा । बैठाया , तो बैठ गए । उसने नाच शुरू किया। रामकृष्ण देख रहे हैं ।

वो वेश्या थोड़ी हैरान भी हुई कि ये किसको ले आये हैं अपने साथ . पर उसको तो पैसे से मतलब है कि अमीर आया है , चढ़ावा आज अच्छा मिल जाएगा । तो उसने गाना शुरू किया , नाची । अब वो तो नाच रही है , गा रही है और रामकृष्ण इस वेश्या को देखे भाव विभोर हो गुए , आँख बंद हो गई , आँख से आसूँ बहने लग गए और ' माँ ! माँ ! माँ ! ' चिल्लाये जा रहे रहे हैं ।

नर्तकी तो एक दम घबरा गई कि ये क्या । उसका गाना सुनके लोग उठते हैं पैसा फैंकने के लिए , वाह वाही करने के लिये , कुछ भेंट देने के लिये । पर ये कैसा आदमी है कि पैरों में गिर गया और ' माँ , माँ , माँ ' चिल्ला रहा है । चिल्लाते चिल्लाते वहीँ बेसुध हो गए । उसने झटपट अपने पैर हटाये , नाच गाना बंद , लोग हैरान ।

वो वेशालय मंदिर बनाई गया रामकृष्ण कि इस भाव समाधी के कारण । एक नर्तकी का राजसी स्थान परम सात्विक मंदिर जैसा हो गया राम कृष्ण की इस भाव समधी के कारण ।

रामकृष्ण की इस समाधी का दर्शन करके नर्तकी हाथ जोड़ के उनके करीब बैठ गई और फिर जब वापिस सुध आई तो उसने कहा , ' आपने मेरे पैर क्यों पकड़े ? इतना पाप मेरे सिर क्यों चढ़ाया आपने ? में तो एक नीचा काम करने वाली , गाने वाली , नाचने वाली स्त्री और आप जैसा महापुरुष !' क्योंकि तब तक सब मालूम हो गया था कि ये हैं कौन । कहती ' आपने ऐसा क्यों किया ? ' रामकृष्ण कहते ,' न , तू तो मेरी माँ है , मेरी जगदम्बा माँ ' !

वो एक वेश्या में भी जगदम्बा देखते , वो एक नाचने वाली में भी काली का स्वरूप देख सकते । अब ये देखने का कमाल हुआ । देखना कि आँख जैसी हो वैसा ही फिर दीखता भी है ।

ऐसे ही सच्चिदानंद व्यापक आधार अधिष्ठान परमात्मा का दर्शन कौन करे , वही करे जो पहले अपने मन कि नींद से जगा है , मन के बंधनों को खोला है जिसने । राग द्वेष अभिनिवेश वासनाओं से चित को हटाया है , चित को समाधान में लाया है , वैराग्य में लाया है , प्रेम में लाया है और चिन्तन करते - करते भीतर उतरता है । जो शोध करता है वही बोध पता है । जो शोध नहीं करता वो भोध नहीं पता ।

ऋषि अमृत २००३

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