एक सूफी कथा





एक
सूफी फ़कीर कोई बीस साल तक अपने गुरू के पास रहे । फ़िर उसके गुरू पूरे हो गए । शरीर छोड़ गए और फ़िर उनके शिष्य होने लगे । तो एक दिन उसके शिष्य ने पूछा कि गुरूवर ! बताइये , जब आप अपने गुरू जी के पास आए थे तब फ़िर कैसे आचार - विचार , कैसे बात चीत हुई थी । ज़रा हमें बताइये । गुरू ने कहा कि जब मैं अपने गुरू के पास आया था तो तीन साल तक मैं सत्संग में बैठता , सेवा करता और गुरू ने मेरी तरफ देखा भी नहीं । तीन साल तक सुनता रहा , बैठ कर गुरू को , पर गुरू ने मुझको देखा भी नहीं और फ़िर तीन साल के बाद एक दिन अचानक गुरू ने मेरी तरफ देखा और जिस दिन देखा बिजली कौंध गई अन्दर । ख्याल करना सिर्फ़ देखा । संत ने कहा कि फ़िर उसके बाद तीन साल तक गुरू ने देखा भी नहीं और तीन वर्ष बीत चले सत्संग करते - करते , ध्यान करते - करते और फ़िर छे साल के बाद गुरू ने पूछा - कैसे हो ? और बोला जिस दिन कहा कैसे हो तो साथ ही उन्होंने अपना हाथ मेरे सर पर रखा भीतर चक्र जागृत हो गया , कुण्डलनी जागृत हो गई , समाधि हो गई जैसे हजारों सूर्य निकल आए ऐसा प्रकाश अन्दर हो गया । और फ़िर अगले छे साल तक न पूछा , न देखा , न छुआ और फ़िर एक दिन एकाएक गुरू ने अपने मरने के तीन दिन पहले , मैं खड़ा था , गुरू गुजर रहे थे । गुजरते - गुजरते मेरे पास आकर रुके और मुझे गले से लगा लिया और मात्र तीन दिन के बाद उनका शरीर छूट गया ।

शिष्य ने प्रश्न किया । वह पूछता है - हे गुरू महाराज ! ये कैसा प्यार ! कि आपने कभी खुल के बात नहीं कि और उन्होंने आपका नाम तक नहीं पूछा । उन्होंने कहा बुद्धू , नाम पूछने कि जरुरत क्या ? जब परमात्मा ख़ुद बेनाम है तो फ़िर मेरे नाम कि कीमत क्या ? और कीमत है तो सिर्फ़ मालिक के नाम कि । नाम पूछना , हालचाल पूछना एक ओपचारिकता है और गुरू शिष्य मैं ओपचारिकता नाम की कोई चीज है नहीं ।

बीस वर्ष तक गुरू के पास रहा । एक बार सिर्फ़ देखा । एक बार सिर्फ़ पूछा और छुआ और तीसरी बार सिर्फ़ गले से लगाया और बीस वर्ष तक गुरू को सुनते रहे , ध्यान करते रहे और भीतर क्रान्ति हो गई । भीतर जागरण हो गया ।

ऐसी प्रेम की गहराई में उतर जाओ । जीवन में आनन्द हो जाएगा । ऐसे भगवान के सुमिरन में उतर जाओ तो भगवान को भी कहना नहीं पड़ेगा की भगवान आ के दर्शन दे - दे ।

ऋषि अमृत नवम्बर २०००

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