एक सूत्र सत्यता के बोध में ही वैराग्य घटता है


ममता को दूर करने के इलाज हैं दो । एक - वैराग्य । संसार ही असत्यता पर चिन्तन करें कि ' जगत मरणहारा है , यहाँ सदा कुछ नहीं रहेगा , जो है सो बदल जाएगा , जो बदल जाएगा उसका क्या ठीकाना ! '

संसार कि असारता पर चिन्तन करें । इसी एक बात का , संसार कि असारता का , संसार की अनित्यता का चिन्तन सतत भीतर चले । यह एक ही बात याद में गहरी उतरे कि कुछ भी यहाँ सदा टिकने वाला है नहीं । यहाँ कुछ भी नित्य , सदा रहने वाला नहीं । सबकुछ बदल जाएगा । सबकुछ परिवर्तित होता रहेगा ।

परिवर्तन प्रकृति का नियम है । हर चीज़ बदलेगी , बदलनी ही है । तो जो बदल ही जाना है उससे दोस्ती क्या ! अपने बेगाने हो जाए , तो फिकर मत करना । अपनों का पराया हो जाना यह हकीक़त है । दादास जुटाओ और जीवन के इस कठोर सत्य का सामना करो ।

मित्र हमेशा नहीं बना रहेगा । मित्रता ने दुश्मनी बदलना ही है , क्योंकि परिवर्तन इस संसार का नियम हैं । इस संसार का नियम ही है कि यह परिवर्तित होता रहता है । तो अपने मन को ममता से बाहर निकालने का एक तरीका है ; वैराग्य ।

ऋषि अमृत अक्टूबर २००७

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