निंदा न करना

आप ईमानदारी से देखिए , अपने मन में झांकिए और पूछिए अपने आप से कि क्या आप दूसरे के कृत्यों में , क्या आप दूसरों के जीवन में रूकावट डालते हैं ?

निंदा करने का अर्थ यह है तुम्हारी दृष्टि अपने - आप पर नहीं , दूसरों पर है । तुम्हारे जीवन में जब कुछ करने को नहीं , तो खाली हो , इसलिए दूसरों कि जिंदगी में ताक - झांक करते फिरते हो । तुम्हें दूसरों से क्या लेना - देना , अपने अन्दर कि तृष्णा को , पीड़ा को मिटाओ । तुम अपने कृष्ण को कहो कि मेरे अंतर में साँची लगन लगा , ताकि मैं अपनी जिंदगी सुधारूं । मैं दूसरों की जिंदगी में दखलअंदाजी करूँ ही क्यों ? आप ईमानदारी से देखिए , अपने मन में झांकिए और पूछिए अपने आप से , कि क्या आप दूसरे के कृत्यों में , क्या आप दूसरों के जीवन में रूकावट डालते हैं ? माना किसी ने ग़लत किया , जिसने किया , वो भुगतेगा , तुम काहे को चिंतित हो रहे हो ।

बुद्ध कहते हैं कि साधु कौन ? जो दूसरों कि निंदा करे

आदमी को जितना मजा निंदा करके आता है , शायद और किसी चीज़ में नहीं आता । बिना तथ्य को जाने , बिना तथ्य को समझे , बिना सच्चाई को जाने , सुनी - सुने बात , अथवा अपने मन कि कल्पना , अथवा मन के अनुमान जोड़ कर किसी के विषय में अहितकारी बात सोचना , यह है निंदा ।

कोई कहता कि फलां ऐसा है , वह ऐसा है , और कान कितने बड़े करके सुनते हैं कि अच्छा और , अच्छा और ............। अब हमने सुनी , तो हम हजम नहीं करेंगे , हम यही बात किसी दूसरे को सुनायेंगे । जब दूसरे को सुनायेंगे , तो क्या बातें और जोड़ देंगे । जिसको तुम सुनाओगे , वह भी आगे सुनाएगा । जैसे
" किसी की पीठ पीछे निंदा करना , वमन करने जैसा है । "

तुम बिमारी पचा नहीं पाए , उसका भी हाजमां ख़राब , वह भी किसी और पर उल्टी करेगा ।

किसी की पीठ पीछे निंदा करना वमन करने जैसे है । मान तो आप पहाड़ जाने के जिस बस में सफर कर रहे हो , कईयों को तो मैदानी इलाके में ही बस का सफ़र करते ही उलटी आनी शुरू हो जाती है । बस में आपके बगल में कोई बैठा हो और उसका जी मिचलाने लगे , उल्टी होने लगे , तो बस की सीट इतनी बड़ी होती नहीं की तुम खिसक जाओ , और उसका जी मिचलाने लगे , उल्टी होने लगे , तो बस की सीट इतनी बड़ी होती नहीं की तुम खिसक जाओ , और उसने मुहं खोला , और भड़ाक .........., करके तुम्हारी गोद में कर दिया सारा काम , मजा आया ? तुम कहोगे की अरे , सारे कपड़े हामरे खराब कर दिए , इसमें मजा क्या आया ? तुम कहोगे कि अरे , सारे कपड़े हमारे ख़राब कर दिए , इसमें मजा क्या आया ? अब वह उल्टी आपकी गोद में तो नहीं करना चाहता होगा , जन तो खिड़की कि तरफ़ चाहता होगा , जाना तो खिड़की कि तरफ़ चाहता है , पर बीच में आप बैठे हो , उसके पास इतना वक्त नहीं कि वह खिड़की तक पहुँच पाए , और आपकी गोद में कर दी , तो आपको ख़राब लगेगा , गुस्सा भी आएगा कि जी मिचलाता है , तो बस में सफ़र ही क्यों करते हैं । गोली क्यों नहीं खा लेते ? दस उपदेश देने लग जाओगे ।

जब दूसरे की , की गई उल्टी तुम्हें बर्दाश्त नहीं होती है , तो जब कोई आकर दूसरे के बुरे की उल्टी तुम्हारे ऊपर करता है , तब तुम कैसे मजे से खाते हो उसको ? सिर्फ़ डलवाई ही नहीं गोद में , खा भी जाते हो ।

कितनी जल्दी से हम दूसरों की बुरे करने में मजा लेते हैं । मालूम क्यों करते हैं ? इसलिए करते हैं की दूसरे की बुराई करते - करते - करते परोक्ष में अपने आपको अच्छा कह रहे हैं । मेरे आसपास जितने हैं , में सबकी बुराई करूँ कि ' इसमें यह बुराई है ' , ' इसमे यह बुराई है ' , पर आप कहोगे कि अपनी बात तो बोलते नहीं ।

निंदा करने वालों को रस नंदन करने में नहीं है , दूसरे को ख़राब दिखाकर अपने आपको अच्छा दिखा सको , यह रस है । पर यह बड़ी नीच मानसिकता है ! खाली सत्संग सुना , ध्यान लगाया , इतने में थोड़ा तुम साधक हो जाओगे । मन के इन सूक्ष्म खेलों को समझना व इनसे छूटना आवश्यक है ।

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