स्त्री शक्ति



स्त्री शक्ति है, देवी है, पूजनीय है ऐसा तो सभी मानते है। परन्तु पुरुषों द्वारा दिए इन् विशेषणों में साथ ही कुछ अजीब शर्तें भे रख दी हैं। जैसे, स्त्री पुरूष के अधीन रहे। पहले पिता के अधीन, फ़िर पति के अधीन और अगर पति जीवित रहे , तो विधवा हो जाने के बाद पुत्रों के अधीन रहे। अगर उसके पुत्र हो, तो भाइयों के सहारे रहे।

और अगर स्त्री इन बन्धनों को स्वीकार करे तो फ़िर समाज और धर्म के ठेकेदार उसे कुलटा, पतिता और वेश्या तक का नाम देते भी घबराते नही। स्त्री अगर पुरुषों द्वारा रचे हुए शास्त्रों के नियमो में बंधी रहे, तो एक बंधित पशु की भांति कुछ दूर टहलने के लिये ही सिर्फ़ जरा सी रस्सी ढीली कर दी जाती है।

ऐसा करने के कारण पूछें , तो कहे जाते हैं एक , स्त्री की बुद्धि नही होती और हो भी तो कम होती है दूसरा , स्री बहुत चंचल होती है , इसलिए उस पर अधिक भरोसा नही किया जाता। तीसरा, स्त्री कमजोर हृदय की होती है, इसलिए जल्दी भावुक हो जाती है और फ़िर भाव में कुछ भी ग़लत कर बैठती है। चौथा कारण , स्त्री के शरीर की रचना ऐसी है कि वह बलात्कार की शिकार हो सकती है और उसका मासिक धर्म उसे कमजोर, चिडचिडा और रोगी बना देता है।

इसलिए स्त्री सदेव पुरुषों की आश्रित होकर रहे पुरूष ही उसकी , सुरक्षा और भरण पोषण कर सकता है इन् तर्कों में कितनी सच्चाई है , आइये थोड़ा इस पर चिंतन करें!

पहला तर्क कि स्त्री में बुद्धि नहीं होती। अगर स्त्री में बुद्धि नहीं होती, तो फ़िर उससे जन्मे हुए पुत्रों में बुद्धि कि कमी दिखनी चाहिए। यह कैसे सम्भव है कि माता तो बुद्धि से कमजोर है परन्तु पुत्र अक्लमंद पैदा हुआ हो और फिर उसी माता से जन्मी पुत्री तो उसके जैसी कम बुद्धि वाली हो ? माता में बुद्धि कि कमी मानी जाए, तो इसका मतलब ऐसा कहने वाले तमाम स्त्री जाती को ही अपमानित कर रहें हैं

माँ गार्गी ,महान मदालसा, मैत्रेयी, इन स्त्रियों को आप क्या किसी भी ऋषि, महाऋषि से कम कह सकेंगे! मदालसा जैसी स्त्रियों की बात तो क्या ही कहनी! जो ख़ुद तो बुद्धिमान है ही, आगे से ख़ुद ही सदगुरु की भांति अपने सात-सात पुत्रों को ज्ञान का उपदेश देती है।

योगावासिष्ठ में ज़िक्र आया है रानी चुडाला का , जो अपने पति राजा शिखरध्वज को ज्ञान देती है। वह बात अलग है कि पत्नी कि बात वह मानेगा नहीं , ऐसा देख करके उसे उपदेश देने के लिये योग शक्ति द्वारा उसे पुरूष का रूप लेना पड़ा। ज्ञान देने के बाद ही अपना वास्तविक रूप उसने अपने पति को दिखाया कि यह कोई मुनि महात्मा नहीं, स्वयं उसकी पत्नी चुडाला है

महाप्रतापी शिवाजी के राजनीतिक जीवन की सूत्रधार और प्रेरक उनकी माता जीजाबाई थी। और युद्ध कौशल में निपुण झाँसी की रानी, रजिया , गुरु गोविन्द सिंह कि खालसा फौज में माई भागो अपने बुद्धि बल और युद्ध कौशल के कारण सेना की नायिका बनी।

इंदिरा गाँधी, मार्गारिट थेचर ये आज की राजनीतिज्ञ महिलाएं ! क्या बिना बुद्धि के ये सभी राजनीति में कार्य कर पातीं ! ज्यादा क्या कहना ! विद्या की देवी माँ सरस्वती मानी जाती है तो बिना बुद्धि के ही विद्या की देवी कहलाती है ? तो कोई कैसे कह सकता है कि स्त्रियों में बुद्धि की कमी है ?

दूसरा तर्क यह दिया जाता है कि स्त्री चंचल होती है चंचलता और ठहराव तो मन का स्वभाव है। शरीर से उसका क्या लेना देना ! मन में रजोगुण अधिक हो, तो पुरुष और स्त्री दोनों ही उच्चश्रंखल हो जायेंगे। मन में सत्वगुण अधिक हो तो, दोनों ही शांत , गंभीर , ठहरे मन वाले होंगे। मन की शान्ति - अशांति, चंचलता - ठहराव का सम्बन्ध इंसान की बुद्धि से, गुण, व्यवहार कुशलता और चेतना से है , ना की शरीर से !

ध्यान की गहराईयों को दोनों ही समान रूप से छू सकते हैं मन की सौम्यता , एकाग्रता पर किसी पुरूष या स्त्री किसी जाती का प्रभाव नहीं है। इच्छा और वासना मन में हो , तो मन चंचल होगा ही ! फिर वह मन चाहे स्त्री का हो या पुरूष का!

तीसरा तर्क दिया जाता है कि स्त्री हृदय प्रधान होती है भावना में बह जाती है तो यह गुण हुआ, कि अवगुण! भाव विहीन इंसान तो जड़ है,पत्थर है,संवेदनहीन है कोई कवि तब तक कवि नहीं बन सकता ,जब तक उसका हृदय भावना और संवेदना से भरा हो

वही बात मूर्तिकार , शिल्पकार, गायक, नर्तक पर भी लागू होती है भावना, संवेदना इंसान को उभारती है यही भावना श्रद्धा से भरपूर हो जाए , तो परमात्मा के प्रति प्रेम में बदल जाती है। यही भावना उसके लिये भक्ति कि सीढ़ी सिद्ध होती है। भक्ति मार्ग पर चलने के लिये महँ संवेदनशीलता चाहिए। भाव विहीन इंसान क्या भक्त हो सकेगा और क्या प्रभु को प्राप्त कर सकेगा !

चौथा तर्क दिया जाता है कि स्त्री का शरीर ऐसा है कि हर माह मासिक धर्म के कारण वह रोगी कमजोर और चिडचिडी हो जाती है कई पुरूष रचित शास्त्र रजस्वला स्त्री को अपवित्र मानते हैं इस्सी के आधार पर कथावाचक और पंडित स्त्री प्रहार करते है कि स्त्री ' ' नहीं बोल सकती, स्त्री पूजा - पाठ नहीं कर सकती ! और उसको उन दिनों दर्शन भी नहीं करना चाहिए !

अब सवाल यह उठता है कि क्या यह पुरूष कथावाचक जानते हैं कि स्त्री को मासिक धर्म आए , तो स्त्री जरुरत और समय अनुसार गर्भवती नहीं हो सकती ! अगर स्त्री गर्भवती नहीं हो सकेगी, तो उनके जैसे पुत्रों को जन्म भी नहीं दे सकेगी।

मासिक धर्म कुदरत द्वारा दी गई स्त्री शरीर कि व्यवस्था है , जिससे लड़की एक दिन माँ हो पाति है। कुदरत कि इस व्यवस्था कि निंदा करना और उसी कारण स्त्री को भी अपवित्र , अदर्शनीय कहना , यह क्या सही है ?

यहाँ तक भी कहा जाता है कि मासिक धर्म में स्त्री भजन नहीं करे सवाल यह उठता है कि पूजा - पाठ तो दिल से किया जाता है सुमिरन , भजन , जप , दिल से किया हो , तो ही सही माना जाता है नहीं तो , हाथ में तो माला घूम रही है और मन ? मन संसार में भटकता है ! क्या इसे भजन कहा जा सकता है ?

भगवदगीता कहती है: अंत में जैसी मति होती है , वैसी ही मानव कि गति होती है और मृत्यु का क्या ! वह तो कभी भी सकती है ! तो क्या रजस्वला स्त्री मृत्यु के समय पर भी भजन - पूजा करे ? हर शवास को हरी भजन में लगाना तो सभी के लिये श्रेयस्कर है , चाहे स्त्री हो या पुरूष !

आज के आधुनिक समय में स्त्री हर जगह में सफलतापूर्वक कार्य कर रही है। चाहे वह शिक्षा का हो , सरकारी नौकरी का हो अथवा पुलिस या सेना में या ख़ुद का व्यवसाय हो ! हर जगह स्त्री पूरी कुशलता से पुरुषों जैसा अक्षुण काम कर रही है।

जिन्होंने शास्त्र रचे वे भी पुरूष , जिन्होंने समाज के नियम बनाये वे भी पुरूष , जो कथावाचन करता है वह भी पुरूष ! तो ये पुरुषों ने बनाई हुई सभी धारणाओं के जरिये वे अपने अहम् को ही पुष्ट करते रहते है जैसे, पुरूष बुद्धिमान है और स्त्री कम बुद्धि की ! पुरूष भावुकता में बह नहीं जाते और स्त्री तो सदा ही भावना में बह जाती है पुरूष चंचल नहीं होते , स्त्री तो बड़े चंचल मन की होती है। पुरूष के शरीर की रचना सदा उसे स्वस्थ बनाये रखती है और शक्तिपूर्ण बनाये रखती है , स्त्री का मासिक धर्म और उसके शरीर की रचना उसको कमजोर बनाये रखती है।

अब, स्त्रियाँ सदियों से इन सबी तर्कों को सुनते - सुनते इतनी प्रभावित हो गई है की उन्ही को सत्य मानने लगी हैं।
पर मेरा निवेदन है की जरा खुले दिल से इस पर विचार करें , चिंतन करें और सालों की इस भ्रमित , कुटिल और निंदास्पद कुरीतियों से मुक्त होकर खुले आकाश में साँस लें ! स्त्री कमजोर है , नीच है , अपवित्र है , ऐसा कभी भी ना माने !

स्त्री तो शक्ति है , जगदम्बा है , माँ है , हर अवस्था में महान है आज की जरुरत यह है की लड़कों की भांति लड़कियों को भी उच्च शिक्षा , उचित खान - पान और ज्ञानप्राप्ति के मोके उपलब्ध कराये जाएँ , जिससे लड़की शरीर और मन से स्वस्थ , पुष्ट होकर समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्वों को सफलतापूर्वक निभा सके।

" माँ तू पूजनीय है ! जननी है तू शक्ति है !
तू पूर्ण की ही अंश है ! हे माँ ! तू पूर्ण है !"



1 comment:

Unknown said...

वाह! अद्भुत! बहुत सुन्दर व्याख्यान किया गया है :) ह्रदय से धन्यवाद :) ॐ