शक्ति के उपासक क्यों लगाते हैं जननी के जन्म पे अंकुश


कोलकाता -- दुर्गा और काली के देश में हो रहा है जननी का अपमान। इस देश में लोग जहाँ नारी की पूजा करते हैं वहीं उस के जन्म पर अंकुश भी लगाते हैं। कोलकाता वासियों पर अमृत वर्षा बरसाने आए आनंदमूर्ति गुरुमाँ ने पत्रकारों से हुई खास बातचीत में कहा कि :

पत्रकार : गुरुमाँ , सबसे पहले ये बताए की इस पुरुष प्रधान बताए जाने वाले देश में धारा से अंबर तक की आपकी यात्रा क्या आसान रही?
गुरुमाँ - मेरे और मेरे अनुयाइयों के बीच वीश्वास ही है। इसी के माध्यम से मैं सबको रूढ़िवाद की राह पर नहीं, बल्कि परंपरा व संस्कृति की राह तक पहुचाती हूँ । सफलता की राह में समस्याएं तो अनगिनत आईं, लेकिन आत्मविश्वास और दृढ़ता ने मुझे इस मुकाम तक पहुचाया। अभी तक कभी किसी पुरुष ने मेरा मार्ग प्रत्यक्ष रूप से नहीं रोका है। अगर भविष्य ने ऐसा कुछ दिखाया तो स्वयं को किसी से कम नहीं मानूँगी।
पत्रकार : क्या आपको लगता है कि भारत में परंपरा के नाम पर महिलाओ को दबाया जाता है ?
गुरुमाँ - हम भारतवासीयों को परंपरा व संस्कृति विरासत में मिली है, लेकिन इसके नाम पर महिलाओ को जबरन दबाया जा रहा है। हमारी संस्कृति में औरत को शक्ति का रूप माना गया है लेकिन 21 वी सदी के भारत में आज भी इसके नाम पर औरतो को अबला, कमजोर, अशुद्ध, आश्रित और अज्ञानी ही बनाया जा रहा है । औरत को शक्ति और पराक्रम का पाठ कोई नहीं पढ़ाता क्योंकि पुरुष स्वयं को उपर रखने के लिए सबला को भी अबला की उपाधि देता है ।
पत्रकार : क्या आपको लगता है कि ग्रामीण भारत में अज्ञानता के अधिकार पर ज्ञान की रोशनी डालना आसान है ?
गुरुमाँ - अज्ञानता के अंधकार पर ज्ञान की रोशनी डालना यूँ तो कभी आसान नहीं होता लेकिन मैने देखा है कि ग्रामीण महिलाएँ आगे आने को तैयार हैं, बस उन्हे एक आवाज़ लगाने की देर हैं । मेरा अनुभव बताता है कि ग्रामीण महिलाओं को राह दिखाना शहरी नारियों के मुक़ाबले अधिक आसान है। मैं अध्यात्म के दृष्टिकोण से महिलाओं को सशक्त बनाने की कोशिश करती हूँ और अब तक इस कोशिश में कामयाब भी रही हूँ ।
पत्रकार : नारी को सशक्त बनाने के लिए दिए गये प्रवचनो को सुनकर पुरुषों की क्या प्रतिक्रिया होती है ?
गुरुमाँ - किसी भी इंसान में समझ का अभाव नहीं होता, बस फ़र्क सिर्फ़ इतना है कि कौन क्या समझना चाहता और क्या करना चाहता है । मैं यह तो नहीं कहती कि पुरुष को महिलायों के नीचे रहना चाहिए । मैं पुरुषों को सिर्फ़ यही कहती हूँ कि आप महिला को इज़्ज़त तथा उसे उसका उचित स्थान दें ।
पत्रकार : आपके अनुसार आगे बढ़ रहे समाज में महिलाओं को अनजाने में भी अनदेखा किया जा रहा है?
गुरुमाँ - अनजाने में ही उनको कम जान कर अनदेखा किया जाता है । मैं एक ऐसी युवती को जानती हूँ जिसने अपने पिता से झगड़ कर बाहर जाकर डाक्टरी कि पढाई की । इसके बाद उसने शादी की लेकिन शादी के बाद डाक्टरी छोड़ दी और अपने पति की फॅक्टरी में उसके साथ काम करने लगी । वह पिता से तोलड़ पाई लेकिन अपने जीवन साथी का विरोध नहीं कर पाई । इसी प्रकार कई महिलाएँ ऐसे ही अपनी इच्छाओं को दिल में दबा कर जी रही हैं ।
पत्रकार : अगर अध्यात्म की बात करें तो आज की भागती हुई ज़िंदगी को स्थिरता कैसे मिल सकती है ?
गुरुमाँ - इसका एक सीधा सा तरीका है, अपने आप से प्रश्न करो... पूछो खुद से तुम्हारा जन्म क्यों और किसलिए हुआ है? तुम्हे क्या करना है? इसी प्रकार किसी को भी संतुष्टि मिलती है और वह केवल सांस लेना ही नहीं बल्कि जीवन् को जीना सिखाती है ।
पत्रकार : क्या आपको लगता है कि आजकल अधिकांश गुरु सेलेब्रिटी (हस्तियों ) के गुरु ही बनकर रह गये हैं ?
गुरुमाँ - ऐसा कहा जा सकता है । लेकिन मुझसे से पूछो तो मुझे लगता है जो अपने जीवन को सेलेब्रेट करता है वही सेलेब्रिटी होता है ।
पत्रकार : क्या आपको लगता है कि राजनीति में धर्म का इस्तेमाल हो रहा है ?
गुरुमाँ - कुछ राजनेता अपने स्वार्थ के लिए धर्म के नाम पर लोगों को भड़काते हैं। धर्म आपको संस्कृति और मर्यादा प्रदान करता है जिससे राजनीति कोसों दूर रहती है ।
पत्रकार : एक आख़िरी सवाल, महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए आपकी परियोजना 'शक्ति' किस प्रकार काम कर रही है ? फीमेल फिटीसाइड को रोकने का प्रयास किस प्रकार जारी है ?
गुरुमाँ - आँकड़े बताते हैं कि 1947 से लेकर अब तक देश में करीब 3.5 करोड़ लड़कियाँ गायब हुई हैं । माना जा सकता है कि पुरुष प्रधान समाज ने उनकी बलि दे दी होगी । 'शक्ति' नारियों को उनका स्थान देने के लिए काम कर रही है। पिछड़े इलाक़ों में महिलाओं को साक्षरता उपलब्ध कराना सबसे बड़ा अभियान है । गत वर्ष करीब 225 युवतियों को आर्थिक मदद देकर उन्हे साक्षर बनाया गया ।
संमार्ग - महानगर (फ़रवरी 3, 2009), कोलकाता