गुण चुन अवगुण नहीं



" फरीदा ख़ाक निंदिये , खाक जेवड कोए
ज्योंदेयाँ
पैरां तले मोंयाँ ऊपर होए "

पर हम इस बात को कहाँ याद रखते हैं , हमको तो फुर्सत कहाँ हैं , लोगो की कमियां , लोगो के अवगुण , बस वही देखते रहते है । क्या कमी है , क्या कमी है , देखो उसको । फरीद कहते है -

" फरीदा जे तू अकाल लतीफ़ , काले लिख न लेख
आपने गिरबान में सिर नीवां कर देख "

काहे समय गवाओ कि पड़ोस के लोग क्या करते हैं , दुसरे लोग क्या करते हैं , दूसरों कि कमियां , दूसरों के अवगुण देखते फिरो , क्यों ? अरे , किसी बाग़ बगीचे में जाओ तो क्या देखोगे , कांटे कि फूल ? गुलाब कि झाड़ी के करीब भी जाओगे तो काँटों से हाथ बचा बचा के फूलों को तोड़ोगे । कैक्टस काँटों से भरा पौधा है पर किन्ही एक कैक्टस कि प्रजाति में जैसे लोटस कैक्टस , निचे तो कांटे ही कांटे हैं अंतत बहुत सुंदर फूल खिल जाता है , बड़े खुबसूरत रंगों में फूल खिलता है । कैक्टस के लगे हुए फूल को भी अगर लेना चाहोगे तो बड़ा बचा के उसको तोड़ोगे , काँटों से हाथ को बचा के फूल को तोड़ लोगे ।

अगर बगीचे से तुम फूल चुनते हो और काँटो को छोड़ देते हो तो मनुष्य के गुणों को चुनों , उसके अवगुणों को छोड़ दो । पर तुम बन जाते हो समाज सुधारक । हम निकलें है समाज को सुधारने । भई, पहले अपने आप को तो सुधार ले । गंदे पोचे से जमीन को साफ़ करने लगोगे तो जम्में साफ़ नहीं उल्टे और गन्दी हो जायेगी । पोछा पहले साफ़ करलो । गंदे झाडन से आप साफ़ चीज को भी और गन्दा कर लोगे । गुरु अर्जुन देव जी ने सुखमनी साहब में बड़ा सुंदर कहा -
'अवर उपदेशे आप करें , आवत जावत जन्मे मरे '

दूसरों को उपदेश दे रहा है सुधर जाओ , माया छोड़ दो । गा रहे हैं - ' माया छड जानी । पीछे सब बोल रहे हैं , माया छड जानी' ख़त्म हुआ कीर्तन तो कहते , माया कित्थे ? ओ लिफाफा कित्थे है ? सवा लाख रुपये कि बात हुई थी ये तो कम लग रहे हैं , ये पूरे पैसे दो जी । एक ने कहा - अभी तो आपने गया है, ' माया छड जानी ' तो २००० अगर कम है तो उसको तो छोड़ जाओ । वो कहते , ये दूसरों को सुनने के लिये कहते हैं ' माया छड जानी , हमको ले के जानी ' दुसरे छोडे हम थोड़े छोडेंगे ।

'अवर उपदेशे आप करें , आवत जावत जन्मे मरे '

उपदेष्टा है , कथा करता है , उपदेष्टा है , संसार को उपदेश दे रहा है । एक ने कहा महाराज - ! घर में चरण डालो , सेवा का मौका दो । कहते - ' अच , फ़िर हमारी सेवा क्या करोगे ?

तो सेवा मोटी दिखती हो तो जाता है और सेवा मोटी न दिखती हो तो नहीं जाता । बैठ के उपदेश दे रहा है ।

पर कभी कभी ऐसे वक्ताओं के विषये में मैं ये करती हूँ , चलो कोई नहीं , बाल बचे पालने हैं उसको , डेरा स्थान चलाना है , आश्रम चलाना है , कोई नहीं जो कर रहा सो कर रहा पर जितनी देर ढंग कि कुछ बात कह रहा है वो ढंग की बात को तो पकड़ लो । सर्वगुण संपन नहीं है तो कोई बात नहीं , उसके उतने हिस्से को ले लो जितने हिस्से को वो कह रहा है । वो माया छोड़ रहा है कि नहीं छोड़ रहा , अगर उसकी कही हुई बात को सुनके आपने माया से फंदा छुडा लिया तो गुरु जी तो बंधे रह जायेंगे बंधन मैं , चेले जी मुक्त हो जायेंगे ।

" फरीद जे तो अक्ल लतीफ़ , काले लिख न लेख
आपने गिरबान में सिर नीवां कर देख "

अपने अन्दर झाँक के देख , दूसरों को नुख्ताचीनी न करो । नुख्ताचीनी करने की आदत है तो अपनी और नुख्ताचीनी करके देख ले कि इधर क्या कमियां हैं । पर हम अपनी कमियाँ नहीं देख पाते हैं , दूसरों कि दिख जाती हैं ।

ऋषि अमृत मार्च 2002

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