रूमी



'रूमी' नाम है उस परवाने का जो उस रब की शमा पर मर मिटा सदा के लिए अमर हो गया । रूमी एक सूफी है और सूफी कीसी इंसान का नाम नहीं है , सूफी नाम है प्रेम का !

तुर्किस्तान मैं पैदा हुए इस जलालुद्दीन रूमी नाम के सूफी के बारे में बचपन में ही भाविश्येवानी कर दी गई थी - यह जलालुद्दीन अपने सागर के वलवलों में अपनी लहरों में कितनों को अल्लाह वाला कर देगा ।

और हकीक़त थी । आलिम और फाजिल रूमी के दिल में प्रेम की शमा जलाई इनके प्रियतम सद्गुरु शम्स तबरीज़ ने । जब इस मुहबत रुपी चिंगारी ने आग पकड़ी तो रूमी नाचते हैं , बजाते हैं । मुस्लिम धर्म में नाचना - बजाना शरा - शरीयत के विरुद्ध है । वह यह भी भूल गए और उन्होंने संगीत और शायरी को अल्लाह के ज़िक्र में जोड़ दिया ।

उन्होंने कहा था , ' मेरे टेके में बेनदीर के बिना तुम आओगे ' उन्होंने यह बात कही कि संगीत सिर्फ़ कानों का रस लेने कि विद्या नहीं है । यह तो अल्लाह से जुड़ने का जरिए है ।

उन्होंने हजाओं कवितायें और कहानियाँ लिखीं । उन्ही कविताओं के माध्यम से ज्ञान के सूत्र दिए । परमपूज्य गुरुदेव आनंदमूर्ति गुरुमाँ ने जब इन कविताओं को पड़ा , तो उन्होंने इतने सहजता से इनका हिन्दी अनुवाद किया , जैसे वे इन कविताओं का अनुवाद नहीं कर रहे थे , ये कवितायें उनके भीतर से प्रस्फुटित हो रहीं थी । इस पर सोने पर सुहागे का काम किया संगीत ने , जो इन कविताओं के साथ जुडा और एक नई एल्बम "रूमी" नाम से हम शिष्यों के लिए प्रसाद रूप से आ गई ।

यह एल्बम गुरुमाँ कि हम सब को एक अनमोल भेंट है , जिसमें सुंदर व् दिल को छूने वाली कविताओं का उचारण है । इन कविताओं में छुपे प्रेम , दर्द , विरह के भावों को वाही महसूस करे , जो इसे सुने क्योंकि शब्दों में उस अहसास को नहीं बाँधा जा सकता।
ऋषि अमृत पत्रिका मार्च 2006

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